शनैश्चरी अमावस्या
18th April 2015हमारे शास्त्रों में अमावस्या का विशेष महत्तव माना गया है और सबसे खास बात यह है कि यदि अमावस्या शनिवार के दिन पड़े तो इसे सोने पर सुहागा माना जाता है। हमारे विद्वान ॠषि-मुनियों के द्वारा रचे गये हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह के 30 दिनों को 15-15 दिनों के दो पक्षों में विभाजित किया गया है शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में। शास्त्रों के अनुसार चंद्रमा की सोलहवीं कला यानि अमावस्या के दिन चांद आकाश में दिखाई नहीं देता है।
शनैश्चरी अमावस्या का महत्तव-
शनैश्चरी अमावस्या को न्याय के देवता शनिदेव जी का दिन माना गया है। इस दिन शनिदेव जी की पूजा विशेष रुप से की जाती है। जिन जातकों की जन्म कुंडली या राशियों पर शनि की साढ़ेसाती और ढैया का असर होता है, उनके लिये शनैश्चरी अमावस्या एक बहुत ही महत्तवपूर्ण अवसर है क्योंकि शनैश्चरी अमावस्या के अवसर शनि जी की पूजा-अर्चना करने पर शांति व अच्छे भाग्य की प्राप्ति होती है। शनैश्चरी अमावस्या के दिन भक्त विशेष अनुष्ठान आयोजित कर पितृदोष और कालसर्प दोष से भी मुक्ति पा सकते है। शनिश्चरी अमावस्या के अवसर पर सुंदरकांड, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान अष्टक आदि का पाठ करने से भी शनि ग्रह के प्रभाव से शांति मिलती है। इसके अलावा शनैश्चरी अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
शनिदेव से जुड़ी पौराणिक कथा -
मनुष्यों और देवताओं में शनिदेव को अपनी क्रूर और टेढ़ी नजर से आहत करने वाले देवता के रुप में जाना जाता है। लेकिन परम तपस्वी और योगी मुनि पिप्पलाद की दिव्य और तेजोमयी नजरों के सामलने शनिदेव जी एक क्षण भी खड़े नहीं रह सके और विकलांग होकर धरती पर गिर पड़े। शनि को इस प्रकार असहाय देखकर ब्रह्मदेव ने मुनि पिप्पलाद को मनाया, तब मुनि पिप्लाद ने मनुष्यों और देवताओं को शनिदेव के कष्टों से छुटकारा दिलाने के लिये शनि मंत्रों और स्तोत्रों की रचना की। इन मंत्रों और स्त्रोत का पाठ करने से शनि के अशुभ असर और कोप से बचाव होता है।
नमस्ते कोणसंस्थय पिङ्गलाय नमोस्तुते।
नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते॥
नमस्ते रौद्र देहाय नमस्ते चान्तकाय च।
नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो॥
नमस्ते यमदसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते॥
प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च॥
नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते॥
नमस्ते रौद्र देहाय नमस्ते चान्तकाय च।
नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो॥
नमस्ते यमदसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते॥
प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च॥
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