Friday, September 5, 2014

अनन्तचतुर्दशी

                                   अनन्तचतुर्दशी
Lord Vishnu
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्त सूत्र बांधा जाता है। चौदह गांठ वाले अनंत सूत्र को विधिवत धारण करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
प्रात:स्नान आदि करने के बाद घर में पूजाघर की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें। शास्त्रों के अनुसार यदि सम्भव हो तो पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करें। कलश पर शेषनाग की शैय्या पर लेटे भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा चित्र को रखें। उनके समीप 14 गांठ लगाकर हल्दी से रंगे कच्चे डोरे को रखे और गंन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य द्वारा ॐ अनन्ताय नम: मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंत सूत्र की विधि-पूर्वक पूजन करें। तत्पश्चात् अनन्त भगवान का ध्यान कर शुद्ध अनन्त को
अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव। 
अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥
मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें। यह धागा अनन्त फल देने वाला है । अनन्त की चौदह गाँठे चौदह लोको को प्रतीक है उनमे अनन्त भगवान विद्यमान रहते है ।
अनंत सूत्र बांध लेने के बाद किसी ब्राह्मण को नैवेद्य में भोग लगाया पकवान देकर स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें। पूजा के बाद व्रत-कथा को पढें या सुनें।
महाभारत काल में जब युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से इस व्रत के महात्म्य के बारे में पूछा, तो श्री कृष्ण ने बताया -हे युधिष्ठिर ! प्राचीन काल में कौड़िल्य ऋषि की पत्नी सुशीला ने अन्नत चतुर्दशी का व्रत किया सुशीला ने उस व्रत का अनुष्ठान करके चौदह गांठो वाला ड़ोरा अपने हाथ में बांध लिया। जिसे देख कौड़िल्य ऋषि को लगा सुशीला ने यह सूत्र उन्हें वश में करने के लिये बांधा है। गुस्से मे ऋषि कौड़िल्य ने उस ड़ोरे को तोड़ आग में ड़ाल दिया। इस जघन्य कर्म के परिणाम स्वरुप उनकी सम्पत्ति नष्ट हो गई। दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने को विवश हो जाने पर कौड़िल्यऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए। जब वे भटकते-भटकते निराश होकर गिर पड़े और बेहोश गए तो भगवान अनन्त दर्शन देकर बोले-हे कौण्डिल्य! तुम्हारे पश्चाताप से मैं प्रसन्न हूँ। आश्रम जाकर चौदह वर्ष तक विधि विधान से अनन्त व्रत करो तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जायेगे । कौण्डिल्य ने वैसा ही किया। उन्हे सारे कष्टो से मुक्ति मिल गई ।

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