कालरात्रि : मां दुर्गा की सातवीं शक्ति
मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।
सहस्रार चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह भागी हो जाता है। उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है। उसे अक्षय पुण्य-लोकों की प्राप्ति होती है।
इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। यह तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं।
मां की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। यह ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है।
मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन यह सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम 'शुभंकारी' भी है। अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।
मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है।
मां कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उपासना करनी चाहिए। यम, नियम, संयम का उसे पूर्ण पालन करना चाहिए। मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिए। वे शुभंकारी देवी हैं। उनकी उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती। हमें निरंतर उनका स्मरण, ध्यान और पूजा करना चाहिए।
नवरात्रि की सप्तमी के दिन मां कालरात्रि की आराधना का विधान है। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है व दुश्मनों का नाश होता है, तेज बढ़ता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में सातवें दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं। हे मां, मुझे पाप से मुक्ति प्रदान कर।
Tuesday, September 30, 2014
गाँधी जयंती
2nd October 2014
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ……
सत्य और अंहिसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी का जन्म 2 अक्टूबर सन् 1869 में हुआ । जिसे हम राष्ट्रीय पर्व के रुप में मनाते हैं, और दुनिया भर के लोग अंतराष्ट्रीय अंहिसा दिवस के रुप मनाते हैं। इनका जन्म गुजरात के पोरबन्दर शहर में हुआ था। इनके पिता कर्मचन्द गाँधी राजकोट के दिवान थे तथा माता पुतली देवी अत्यन्त धार्मिक विचारों वाली महिला थी। विद्यार्थी जीवन में ही इनका विवाह कस्तूरबा गाँधी से हो गया था।
गाँधी जी ने कुछ साल दक्षिण अफ़्रीका में बिताए थे। यहाँ पहली बार गाँधी जी ने सत्याग्रह का प्रयोग किया था। दक्षिण अफ़्रीका से लौटने के बाद गाँधी जी ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में हिस्सा लिया। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में गाँधी जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। स्वतन्त्रता संग्राम की शुरुआत गाँधी जी ने सत्याग्रह और डांडी मार्च से शुरु किया । सत्य और अंहिसा को आधार बनाकर राजनीतिक स्वतन्त्रता का आन्दोलन छेड़ा । उन्होंने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध असहयोग आंदोलन किया। विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई। हिंसा के कारण गाँधी जी ने आन्दोलन वापिस ले लिया। सन् 1929 में गाँधी जी ने 'नमक-सत्याग्रह' नाम से आंदोलन किया। गाँधी जी ने स्वयं साबरमती आश्रम से डांडी तक पैदल यात्रा की तथा वहाँ नमक बनाकर नमक कानून का उल्लंघन किया। सन् 1942 में उन्होनें भारत छोड़ो आन्दोलन छेड़ दिया। देश-भर में क्रान्ति की ज्वाला सुलगने लगी। देश का बच्चा-बच्चा अंग्रेजी सरकार को उखाड़ फ़ेकने पर उतारु हो गया। गाँधी जी के अथक प्रयासों के परिणाम स्वरुप 15 अगस्त सन् 1947 को हमारा देश स्वतन्त्र हो गया।
गाँधी जी ने छुआ-छूत, जाति-पाति, मदिरापान आदि का घोर विरोध किया। उन्होंने स्वदेशी पर बल दिया। राजनीति में नैतिकता को स्थान दिया। उन्होंने ग्रामीण विकास को ध्यान में रखते हुए लघु उद्योगों को लगाने की दिशा प्रदान की। वे कुशल राजनीतिज्ञ और महान संत थे। बापू की तरह शायद ही कोई और इस पृथ्वी पर जन्म लेगा। महात्मा गाँधी का व्यक्तित्व, उनके विचार तथा देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किए गए उनके संघर्ष उन्हें विश्व के महानतम् व्यक्तियों की ऐसी श्रेणी में खड़ा करते हैं, जहाँ उनकी बराबरी करने वाले कोई नहीं हैं। महात्मा गाँधी जी का सादा जीवन तथा अद्भुत व्यक्तित्व के सामने केवल देशवासी ही नहीं वरन् विदेशी लोग भी नतमस्तक हुए हैं। भले ही आज महात्मा गाँधी हमारे बीच नही हैं, लेकिन गाँधी जी के विचारों से पूरा विश्व प्रेरित होता रहेगा।
Thursday, September 18, 2014
Why women can't keep secrets?
It is a proven fact that women can't keep secrets. It is true for about 90% females. Does the reason belong to Hindu mythology? Did Yudhishthira curse her own mother Kunti?
After the battle of Kurukshetra, Yudhisthira performed the funeral rites for all loved ones. Then Kunti revealed a secret that Karn (Radheya) was her son. Yudhishthira got deeply hurt that Kunti did not reveal to him earlier that Karna was his brother. The depressed prince, in turn, cursed that no woman, henceforth, would be able to keep any secrets.
Story
After the battle of Kurukshetra, Dhristarastra asked Vidura, Dhaumya and Sanjaya to make all arrangements for the cremation of the great warriors killed in the war. Karna had no sons to offer any oblations. They all had been killed. Kunti could not bear this final injustice Karna (Radheya). She called Yudhisthira and said, "One person has been left. You should offer oblations for him too." Yudhisthira was surprised. He said, "Mother how can I forget anyone who died for me? Who is that person you speak of?"Kunti said, "Radheya was a Kshatriya. He was the son of Surya. I am his mother. Surya had given me this child when I was a maiden, living in my father's house. Afraid of the consure of the world, I put him in a box and set it afloat on the waves of Ganga. He was found by Atiratha and his wife Radha brought him up. I am the cause of his tragic life." Saying this Kunti fainted. Now the grief of the Pandavas was unbearable. Krishna looked at Kunti and at the Pandavas with infinite
The Pandavas remembered each and every detail of his noble qualities. The Pandavas asked Kunti did Karna know about it. The answer came from Krishna, "Yes he did". Yudhisthira was very angry with her mother for the great injustice done by her to Karna.
"He cursed the entire women race that they would not be able to hide any secret henceforth"
श्राद्ध पक्ष : क्यों नहीं होते 16 दिन शुभ कार्य?
श्राद्ध पक्ष : क्यों नहीं होते 16 दिन शुभ कार्य?
श्राद्धपक्ष का संबंध मृत्यु से है इस कारण यह अशुभ काल माना जाता है। जैसे अपने परिजन की मृत्यु के पश्चात हम शोकाकुल अवधि में रहते हैं और अपने अन्य शुभ, नियमित, मंगल, व्यावसायिक कार्यों को विराम दे देते हैं, वही भाव पितृपक्ष में भी जुड़ा है। इस अवधि में हम पितरों से और पितर हमसे जुड़े रहते हैं।
अत: अन्य शुभ-मांगलिक शुभारंभ जैसे कार्यों को वंचित रखकर हम पितरों के प्रति पूरा सम्मान और एकाग्रता बनाए रखते हैं।
श्राद्ध में कौए-श्वान और गाय का महत्व
- श्राद्ध पक्ष में पितर, ब्राह्मण और परिजनों के अलावा पितरों के निमित्त गाय, श्वान और कौए के लिए ग्रास निकालने की परंपरा है।
- गाय में देवताओं का वास माना गया है, इसलिए गाय का महत्व है।
- श्वान और कौए पितरों के वाहक हैं। पितृपक्ष अशुभ होने से अवशिष्ट खाने वाले को ग्रास देने का विधान है।
- दोनों में से एक भूमिचर है, दूसरा आकाशचर। चर यानी चलने वाला। दोनों गृहस्थों के निकट और सभी जगह पाए जाने वाले हैं।
- श्वान निकट रहकर सुरक्षा प्रदान करता है और निष्ठावान माना जाता है इसलिए पितृ का प्रतीक है।
- कौए गृहस्थ और पितृ के बीच श्राद्ध में दिए पिंड और जल के वाहक माने गए हैं।
Tuesday, September 16, 2014
Significance of OM (AUM) in Hindu!!!
We chant OM to connect with our true Self. Since our true Self is the same as the Supreme Self, when we connect with our true Self we connect with the Supreme Self.
In Sanskrit, the sound "O" is a diphthong spelled "AU". AUM is comprised of three sounds: "A", "U" and "M". There is also a fourth sound which is a universal vibration and is the essence of all other sounds.
AUM represents many trilogies of meanings:
Symbolically the three letters embody the divine energy (Shakti) and it's 3 main characteristics:
(1) beginning of the universe
(2) the life period of universe
(3) destruction of the Universe
AUM is the word which represents the three first forms of God:
1) Brahmaa (Creator of universe)
2) Vishnu (Operator of universe)
3) Mahesh (Destructor of universe).
As per Mandukya Upanishad:
1) The "A" stands for the state of wakefulness, where we experience externally through our mind and sense organs.
2) The "u" stands for the dream state, in which inward experiences are available.
3) In the state of deep sleep, represented by the sound "m", there is no desire and consciousness is gathered in upon itself.
AUM is the one eternal syllable of which all that exists is but the development. The past, the present, and the future are all included in this one sound, and all that exists beyond the three forms of time is also implied in it.
Earth, Atmosphere, and Heaven.
In Sanskrit, the sound "O" is a diphthong spelled "AU". AUM is comprised of three sounds: "A", "U" and "M". There is also a fourth sound which is a universal vibration and is the essence of all other sounds.
AUM represents many trilogies of meanings:
Symbolically the three letters embody the divine energy (Shakti) and it's 3 main characteristics:
(1) beginning of the universe
(2) the life period of universe
(3) destruction of the Universe
AUM is the word which represents the three first forms of God:
1) Brahmaa (Creator of universe)
2) Vishnu (Operator of universe)
3) Mahesh (Destructor of universe).
As per Mandukya Upanishad:
1) The "A" stands for the state of wakefulness, where we experience externally through our mind and sense organs.
2) The "u" stands for the dream state, in which inward experiences are available.
3) In the state of deep sleep, represented by the sound "m", there is no desire and consciousness is gathered in upon itself.
AUM is the one eternal syllable of which all that exists is but the development. The past, the present, and the future are all included in this one sound, and all that exists beyond the three forms of time is also implied in it.
Earth, Atmosphere, and Heaven.
Why People Shout In Anger?
"Stay in control of your anger. Don't let your anger control you."
A Hindu saint who was visiting river Ganges to take bath found a group of family members on the banks, shouting in anger at each other. He turned to his disciples smiled and asked.
'Why do people shout in anger shout at each other?'
Disciples thought for a while, one of them said, 'Because we lose our calm, we shout.'
'But, why should you shout when the other person is just next to you? You can as well tell him what you have to say in a soft manner.' asked the saint.
Disciples gave some other answers but none satisfied the other disciples.
Finally the saint explained, "When two people are angry at each other, their hearts distance a lot. To cover that distance they must shout to be able to hear each other. The angrier they are, the stronger they will have to shout to hear each other to cover that great distance."
What happens when two people fall in love? They don't shout at each other but talk softly, Because their hearts are very close. The distance between them is either nonexistent or very small.
The saint continued, 'When they love each other even more, what happens? They do not speak, only whisper and they get even closer to each other in their love. Finally they even need not whisper, they only look at each other and that's all. That is how close two people are when they love each other.'
He looked at his disciples and said. 'So when you argue do not let your hearts get distant, Do not say words that distance each other more, Or else there will come a day when the distance is so great that you will not find the path to return.'
Monday, September 15, 2014
Janmangal namavali (જનમંગલ નામાવલિ)
Janmangal namavali
જનમંગલ નામાવલિ :
૧. ૐ શ્રી શ્રીકૃષ્ણાય નમઃ૨. ૐ શ્રી વાસુદેવાય નમઃ
૩. ૐ શ્રી નરનારાયણાય નમઃ
૪. ૐ શ્રી પ્રભવે નમઃ
૫. ૐ શ્રી ભકિતધર્માત્મજાય નમઃ
૬. ૐ શ્રી અજન્મને નમઃ
૭. ૐ શ્રી કૃષ્ણાય નમઃ
૮. ૐ શ્રી નારાયણાય નમઃ
૯. ૐ શ્રી હરયે નમઃ
૧૦. ૐ શ્રી હરિકૃષ્ણાય નમઃ
૧૧. ૐ શ્રી ઘનશ્યામાય નમઃ
૧૨. ૐ શ્રી ધાર્મિકાય નમઃ
૧૩. ૐ શ્રી ભકિતનન્દનાય નમઃ
૧૪. ૐ શ્રી બૃહદ્વ્રતધરાય નમઃ
૧૫. ૐ શ્રી શુદ્ધાય નમઃ
૧૬. ૐ શ્રી રાધાકૃષ્ણેષ્ટદવૈ તાય નમઃ
૧૭. ૐ શ્રી મરુત્સુતપ્રિયાય નમઃ
૧૮. ૐ શ્રી કાલીભરૈવાદ્યતિભીષણાય નમઃ
૧૯. ૐ શ્રી જીતેન્દ્રિયાય નમઃ
૨૦. ૐ શ્રી જીતાહારાય નમઃ
૨૧. ૐ શ્રી તીવ્રવૈરાગ્યાય નમઃ
૨૨. ૐ શ્રી આસ્તિકાય નમઃ
૨૩. ૐ શ્રી યોગેશ્વરાય નમઃ
૨૪. ૐ શ્રી યોગકલાપ્રવૃત્તયે નમઃ
૨૫. ૐ શ્રી અતિધૈર્યવતે નમઃ
૨૬. ૐ શ્રી જ્ઞાનિને નમઃ
૨૭. ૐ શ્રી પરમહંસાય નમઃ
૨૮. ૐ શ્રી તીર્થકૃતે નમઃ
૨૯. ૐ શ્રી તૈર્થિકાર્ચિતાય નમઃ
૩૦. ૐ શ્રી ક્ષમાનિધયે નમઃ
૩૧. ૐ શ્રી સદોન્નિદ્રાય નમઃ
૩૨. ૐ શ્રી ધ્યાનનિષ્ઠાય નમઃ
૩૩. ૐ શ્રી તપઃપ્રિયાય નમઃ
૩૪. ૐ શ્રી સિદ્ધેશ્વરાય નમઃ
૩૫. ૐ શ્રી સ્વતન્ત્રાય નમઃ
૩૬. ૐ શ્રી બ્રહ્મવિદ્યાપ્રવર્તકાય નમઃ
૩૭. ૐ શ્રી પાષંડોચ્છેદનપટવે નમઃ
૩૮. ૐ શ્રી સ્વસ્વરુપાચલસ્થિતયે નમઃ
૩૯. ૐ શ્રી પ્રશાન્તમૂર્તયે નમઃ
૪૦. ૐ શ્રી નિર્દોષાય નમઃ
૪૧. ૐ શ્રી અસુરગુર્વાદિમોહનાય નમઃ
૪૨. ૐ શ્રી અતિકારુણ્યનયનાય નમઃ
૪૩. ૐ શ્રી ઉદ્ધવાધ્વપ્રવર્તકાય નમઃ
૪૪. ૐ શ્રી મહાવ્રતાય નમઃ
૪૫. ૐ શ્રી સાધુશીલાય નમઃ
૪૬. ૐ શ્રી સાધુવિપ્રપ્રપૂજકાય નમઃ
૪૭. ૐ શ્રી અહિંસયજ્ઞપ્રસ્તોત્રે નમઃ
૪૮. ૐ શ્રી સાકારબ્રહ્મવર્ણનાય નમઃ
૪૯. ૐ શ્રી સ્વામિનારાયણાય નમઃ
૫૦. ૐ શ્રી સ્વામિને નમઃ
૫૧. ૐ શ્રી કાલદોષનિવારકાય નમઃ
૫૨. ૐ શ્રી સચ્છાસ્ત્રવ્યસનાય નમઃ
૫૩. ૐ શ્રી સદ્યઃસમાધિસ્થિતિકારકાય નમઃ
૫૪. ૐ શ્રી કૃષ્ણાર્ચાસ્થાપનકરાય નમઃ
૫૫. ૐ શ્રી કૌલદ્વિષે નમઃ
૫૬. ૐ શ્રી કલિતારકાય નમઃ
૫૭. ૐ શ્રી પ્રકાશરુપાય નમઃ
૫૮. ૐ શ્રી નિર્દમ્ભાય નમઃ
૫૯. ૐ શ્રી સર્વજીવહિતાવહાય નમઃ
૬૦. ૐ શ્રી ભકિતસમ્પોષકાય નમઃ
૬૧. ૐ શ્રી વાગ્મિને નમઃ
૬૨. ૐ શ્રી ચતુર્વર્ગફલપ્રદાય નમઃ
૬૩. ૐ શ્રી નિર્મત્સરાય નમઃ
૬૪. ૐ શ્રી ભકતવર્મણે નમઃ
૬૫. ૐ શ્રી બુદ્ધિદાત્રે નમઃ
૬૬. ૐ શ્રી અતિપાવનાય નમઃ
૬૭. ૐ શ્રી અબુદ્ધિહૃતે નમઃ
૬૮. ૐ શ્રી બ્રહ્મધામદર્શકાય નમઃ
૬૯. ૐ શ્રી અપરાજીતાય નમઃ
૭૦. ૐ શ્રી આસમુદ્રાન્તસત્કીર્તયે નમઃ
૭૧. ૐ શ્રી શ્રિતસંસૃતિમોચનાય નમઃ
૭૨. ૐ શ્રી ઉદારાય નમઃ
૭૩. ૐ શ્રી સહજાનન્દાય નમઃ
૭૪. ૐ શ્રી સાધ્વીધર્મપ્રવર્તકાય નમઃ
૭૫. ૐ શ્રી કન્દર્પદર્પદલનાય નમઃ
૭૬. ૐ શ્રી વૈષ્ણવક્રતુકારકાય નમઃ
૭૭. ૐ શ્રી પંચાયતનસન્માનાય નમઃ
૭૮. ૐ શ્રી નૈષ્ઠિકવ્રતપોષકાય નમઃ
૭૯. ૐ શ્રી પ્રગલ્ભાય નમઃ
૮૦. ૐ શ્રી નિઃસ્પૃહાય નમઃ
૮૧. ૐ શ્રી સત્યપ્રતિજ્ઞાય નમઃ
૮૨. ૐ શ્રી ભકતવત્સલાય નમઃ
૮૩. ૐ શ્રી અરોષણાય નમઃ
૮૪. ૐ શ્રી દીર્ઘદર્શિને નમઃ
૮૫. ૐ શ્રી ષડૂર્મિવિજયક્ષમાય નમઃ
૮૬. ૐ શ્રી નિરહંકૃતયે નમઃ
૮૭. ૐ શ્રી અદ્રોહાય નમઃ
૮૮. ૐ શ્રી ઋજવે નમઃ
૮૯. ૐ શ્રી સર્વોપકારકાય નમઃ
૯૦. ૐ શ્રી નિયામકાય નમઃ
૯૧. ૐ શ્રી ઉપશમસ્થિતયે નમઃ
૯૨. ૐ શ્રી વિનયવતે નમઃ
૯૩. ૐ શ્રી ગુરવે નમઃ
૯૪. ૐ શ્રી અજાતવૈરિણે નમઃ
૯૫. ૐ શ્રી નિર્લોભાય નમઃ
૯૬. ૐ શ્રી મહાપુરૂષાય નમઃ
૯૭. ૐ શ્રી આત્મદાય નમઃ
૯૮. ૐ શ્રી અખંડિતાર્ષમર્યાદાય નમઃ
૯૯. ૐ શ્રી વ્યાસસિદ્ધાન્તબોધકાય નમઃ
૧૦૦. ૐ શ્રી મનોનિગહ્રયુક્તિજ્ઞાય નમઃ
૧૦૧. ૐ શ્રી યમદૂતવિમોચકાય નમઃ
૧૦૨. ૐ શ્રી પૂર્ણકામાય નમઃ
૧૦૩. ૐ શ્રી સત્યવાદિને નમઃ
૧૦૪. ૐ શ્રી ગુણગ્રાહિણે નમઃ
૧૦૫. ૐ શ્રી ગતસ્મયાય નમઃ
૧૦૬. ૐ શ્રી સદાચારપ્રિયતરાય નમઃ
૧૦૭. ૐ શ્રી પુણ્યશ્રવણકીર્તનાય નમઃ
૧૦૮. ૐ શ્રી સર્વમંગલસદ્રુપ નાનાગુણવિચેષ્ટિતાય નમઃ
— જનમંગલ નામાવલિ
Friday, September 12, 2014
Why We Should Visit Temples?
Why We Should Visit Temples?
It is believed that God is everywhere. If this so, then what is the need for us to go temple for worshiping lord? Know the scientific reasons.
The Location
There are thousands of temples all over India in different size, shape and locations but not all of them are considered to be built the Vedic way. Generally, a temple should be located at a place where earth's magnetic wave path passes through densely. It can be in the outskirts of a town/village or city, or in middle of the dwelling place, or on a hilltop.
The Energy - Earth's Magnetic and Electric Energy
These temples are located strategically at a place where the positive energy is abundantly available from the magnetic and electric wave distributions of north/south pole thrust. The main idol is placed in the core center of the temple, known as Garbhagriha or Moolasthanam. In fact, the temple structure is built after the idol has been placed. This Moolasthanam is where earth's magnetic waves are found to be maximum. There are some copper plates, inscribed with Vedic scripts, buried beneath the Main Idol. The copper plate absorbs earth's magnetic waves and radiates it to the surroundings. Thus a person regularly visiting a temple and walking clockwise around the Main Idol receives the beamed magnetic waves and his body absorbs it. This is a very slow process and a regular visit will let him absorb more of this positive energy. Scientifically, it is the positive energy that we all require to have a healthy life.
Source of Positive Energy
- The Sanctum is closed on three sides. This increases the effect of all energies.
- The lamp that is lit radiates heat energy and also provides light inside the sanctum to the priests or poojaris performing the pooja.
- The ringing of the bells and the chanting of prayers takes a worshipper into trance, thus not letting his mind waver. When done in groups, this helps people forget personal problems for a while and relieve their stress.
- The fragrance from the flowers, the burning of camphor give out the chemical energy further aiding in a different good aura.
- The effect of all these energies is supplemented by the positive energy from the idol, the copper plates and utensils in the Moolasthanam / Garbagraham.
- When people go to a temple for the Deepaaraadhana, and when the doors open up, the positive energy gushes out onto the persons who are there.
- The water that is sprinkled onto the assemblages passes on the energy to all.
- In some temples, women are requested to wear more ornaments during temple visits. It is through these jewels (metal) that positive energy is absorbed by the women. Also, it is a practice to leave newly purchased jewels at an idol's feet and then wear them with the idol's blessings.
The Health Benefits
- Theertham, the "holy" water used during the pooja to wash the idol is not plain water cleaning the dust off an idol. It is a concoction of Cardamom, Karpura (Benzoin), zaffron / saffron, Tulsi (Holy Basil), Clove, etc. Washing the idol is to charge the water with the magnetic radiations thus increasing its medicinal values. Three spoons of this holy water is distributed to devotees. Again, this water is mainly a source of magneto-therapy.
- Clove essence protects one from tooth decay, the saffron & Tulsi leafs protects one from common cold and cough.
- Cardamom and Pachha Karpuram (benzoin), act as mouth fresheners.
- It is proved that Theertham is a very good blood purifier, as it is highly energized. Hence it is given as prasadam to the devotees.
This way, one can claim to remain healthy by regularly visiting the Temples. This is why our elders used to suggest us to offer prayers at the temple so that you will be cured of many ailments.
Energy lost in a day's work is regained through a temple visit and one is refreshed slightly. The positive energy that is spread out in the entire temple and especially around where the main idol is placed, are simply absorbed by one's body and mind. All the rituals, all the practices are, in reality, well researched, studied and scientifically backed thesis which form the ways of nature to lead a good healthy life.
How Many Times One Should Pray God?
How Many Times One Should Pray God?
Great Story Please read it...!!!
We have so many mythological stories and every story teaches us something. Here is the story which tells the real meaning behind remembering God
Once Narada asked Lord Vishnu, "Who is your favorite devotee?"
Narada was expecting his name but Lord Vishnu referred a farmer on earth as his favorite devotee. Narada got upset. He went down on earth and followed the farmer to know what he was doing that made Lord Vishnu happy. Narada observed that farmer remembered the God just twice a day once in morning while waking up and once at night before sleep. Rest of the time he was busy in his daily routine.
Narada came back to Vishnu and complained, "That farmer prays just twice a day but I chant your name through out the day and night then why that farmer is better than me?"
Vishnu replied, "OK Narada! Before I answer you, Please do a task for me. Take this pot full of oil. Walk around the world without spilling a single drop."
Narada concentrating very hard walked around the world without dropping the oil. He came back to Vishnu and proudly told him that the job was done.
Vishnu asked him, "How many times did you chant my name during the task?"
Narada said, "Not even once because my whole concentration was in completing the task successfully so I didn't remember chanting your name."
Vishnu said, "The farmer is also doing my work. The greatness of the farmer is that he sincerely and selflessly remembers me while performing his own duties. It doesn't matter how much time he prays for me."
The point of the story is that we should not be blinded by religion. Don't give up your life to seek God. God meant for you to maintain your life. We can get lost in words and not realize that we are missing God completely
About Choghadiya Table
About Choghadiya Table
Choghadiya or Chogadia is used for checking auspicious time to start new work. Traditionally Choghadiya is used for travel muhurthas but due to its simplicity it is used for any muhurtha.
There are four good Choghadiya, Amrit, Shubh, Labh and Chal, to start auspicious work.
Three bad Choghadiya, Rog, Kaal and Udveg, should be avoided.
The time between sunrise and sunset is called day Choghadiya and the time between sunset and next day sunrise is called night Choghadiya.
About Vaar Vela, Kaal Vela and Kaal Ratri
It is believed that no auspicious work should be done during Vaar Vela, Kaal Vela and Kaal Ratri. Vaar Vela and Kaal Vela prevail during day time while Kaal Ratri prevails during night time. It is believed that all Manglik works done during these timings are not fruitful.
12th September 2014 (Friday)
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દિવસના ચોઘડિયા રાત્રિના ચોઘડિયા
06:51 - 08:25 ચલ 19:23 - 20:49 રોગ
08:25 - 09:59 લાભ 20:49 - 22:15 કાળ
09:59 - 11:33 અમૃત 22:15 - 23:41 લાભ
11:33 - 13:07 કાળ 23:41 - 25:07 +ઉદ્વેગ
13:07 - 14:41 શુભ 25:07+ - 26:33 +શુભ
14:41 - 16:15 રોગ 26:33+ - 27:59 +અમૃત
16:15 - 17:49 ઉદ્વેગ 27:59+ - 29:26 +ચલ
17:49 - 19:23 ચલ 29:26+ - 30:52 +રોગ
Wednesday, September 10, 2014
Tuesday, September 9, 2014
GARUDA PURANA (गरुड़ पुराण)
GARUDA PURANA (गरुड़ पुराण)
Garuda Purana (Devanagari गरुड़ पुराण) is one of the eighteen Puranas which are part of the Hindu body of texts known as smriti. It is a Vaishnava Purana and the epic is in form of conversation between Lord Vishnu and Garuda (King of Birds), primarily emphasizing the reason and meaning of Human Life form. Chapter 1 : Methods to create Body of dead person to travel to Bio Chip Master
Chapter 2 : Methods to feed Atman after death
Chapter 3 : De Coding of Bio Chip and reading information of Bio Creations Chapter 1-2-3
Chapter 4 : Actions for hell
Chapter 5 : Birth as per past actions
Chapter 6 : Life during pregnancy Chapter 4,5,6
Chapter 7 : Benefit of Male children
Chapter 8 : Donation at death time and it's benefits
Chapter 9 : Methods to provide food for dead person Chapter 7,8,9
Chapter 10 : Panchak and methods to avoid bad effect of Panchak
Chapter 11 : Creation of Body of a dead person
Chapter 12 : Donations on eleventh day celebrations Chapter 10,11,12
Chapter 13 : Death on Bed and it's effects
Chapter 14 : Four doors of Bio Chip Master
Chapter 15 ; After suffering or enjoying hell or heaven one takes rebirth Chapter 13,14,15
Chapter 16 : Benefit of birth as human being
Chapter 17 : Benefits to listen Garuda Puran Chapter 16,17
Chapter 2 : Methods to feed Atman after death
Chapter 3 : De Coding of Bio Chip and reading information of Bio Creations Chapter 1-2-3
Chapter 4 : Actions for hell
Chapter 5 : Birth as per past actions
Chapter 6 : Life during pregnancy Chapter 4,5,6
Chapter 7 : Benefit of Male children
Chapter 8 : Donation at death time and it's benefits
Chapter 9 : Methods to provide food for dead person Chapter 7,8,9
Chapter 10 : Panchak and methods to avoid bad effect of Panchak
Chapter 11 : Creation of Body of a dead person
Chapter 12 : Donations on eleventh day celebrations Chapter 10,11,12
Chapter 13 : Death on Bed and it's effects
Chapter 14 : Four doors of Bio Chip Master
Chapter 15 ; After suffering or enjoying hell or heaven one takes rebirth Chapter 13,14,15
Chapter 16 : Benefit of birth as human being
Chapter 17 : Benefits to listen Garuda Puran Chapter 16,17
Monday, September 8, 2014
दुर्गा नवरात्री - DURGA NAVRATRI
विक्रम सम्वत् 2071
महाशक्ति की आराधना का पर्व है '' नवरात्री ''। तीन हिंदू देवियों - पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ विभिन्न स्वरुपों की उपासना के लिए निर्धारित है, जिन्हे नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है। पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरुपों की अगले तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरुपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरुपों की पूजा करते है।
॥ या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
महाशक्ति की आराधना का पर्व है '' नवरात्री ''। तीन हिंदू देवियों - पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ विभिन्न स्वरुपों की उपासना के लिए निर्धारित है, जिन्हे नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है। पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरुपों की अगले तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरुपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरुपों की पूजा करते है।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
माँ दुर्गा के नौ रुप
प्रथम : श्री शैलपुत्री
द्वितीय : श्री ब्रह्मचारिणी
तृतीय : श्री चंद्रघंटा
चतुर्थ : श्री कूष्मांडा
पंचम : श्री स्कंदमाता
षष्ठम : श्री कात्यायनी
सप्तम : श्री कालरात्रि
अष्टम: श्री महागौरी
नवम् : श्री सिद्धिदात्री
यह देवियां भक्तों की पूजा से प्रसन्न होकर उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं। यह पर्व साल में दो बार आता है। एक नवरात्र चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरु होता है। दूसरे नवरात्र का प्रारम्भ अश्विन मास शुक्ल की प्रतिपदा से।
भारत के हर प्रांत में नवरात्री मनाने की विविध परंपराएँ हैं। जहाँ एक ओर गुजरात में गरबा खेला जाता है वही दूसरी ओर बंगाल में माँ की अराधना नगाड़ो से की जाती है । दशमी को औरते सिंदूर खेलती है। और माँ भगवती का आर्शीवाद लेती है।
पूजा - विधि
नवरात्रों में नौ दिनों तक व्रत का विधान हैं, परन्तु यदि सामर्थ्य न हो तो 7, 5, 3 या 1 दिन का भी व्रत रखा जा सकता है। नवरात्रों में पहले और आखिरी दिन व्रत का भी काफ़ी महत्व है। पूजन स्थल को भली प्रकार साफ़ कर एक चौकी रखें। चौकी पर लाल रेशमी वस्त्र बिछाएँ । माँ भगवती की चार भुजा वाली, सिंह पर सवारी करते हुए जो मूर्ति हो उसे स्थापित करें। मिट्टी के बर्तन में जौ, गेहूँ, बोयें, तथा एक कलश की स्थापना करें। कलश पर आम के पल्लव व एक नारियल रखें एवं कलश पर स्वास्तिक बनाएँ । रोली, कुमकुम, अक्षत, लाल व सुगन्धित फ़ूल, धूप, दीप, आदि से पूजन करें। एक घी का दीपक जलाएं जो नौ दिनों तक लगातार जलता रहें। श्रद्धा पूर्वक माता का पाठ करें। पूजन के बाद श्रद्धा पूर्वक आरती करें। शाम के समय में भी श्रद्धा पूर्वक माता की आरती करें।
अष्टमी अथवा नवमी के दिन माँ दुर्गा की कन्या के रुप में पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार कन्या का पूजन माँ का ही पूजन है। इसलिए इस दिन 9 या 11 कन्याओं को श्रद्धा व भक्ति भाव से अपने घर आमंत्रित करें।
कन्याओं के पैर धोकर उन्हें आसन पर बैठाएँ। उनके हाथों में मौली बाँध माथे पर रोली का टीका लगाएँ, सभी की आरती करें। भगवती दुर्गा को चना,हलवा, खीर, पूआ, तथा फ़ल आदि का भोग लगाएँ । यही प्रशाद कन्याओं को अर्पित करें।
इस प्रकार विधि विधान, श्रद्धापूर्ण और विश्वास के साथ पूजन करने से साधक को मनोवांछित फ़ल प्राप्त होते हैं।
Friday, September 5, 2014
विश्वकर्मा पूजन
विश्वकर्मा पूजन
17th September 2014 विक्रम सम्वत् 2071 आश्विन कृ. नवमी
श्री विश्वकर्म प्रभु वन्दऊँ, चरणकमल धरिध्य़ान ।
श्री, शुभ, बल अरु शिल्पगुण, दीजै दया निधान ।।
सतयुग का 'स्वर्ग लोक', त्रेता युग की 'लंका', द्वापर की 'द्वारिका' और कलयुग के 'हस्तिनापुर' आदि के रचयिता विश्वकर्मा की पूजा अत्यन्त शुभकारी है। सृष्टि के प्रथम सूत्रधार, शिल्पकार और विश्व के पहले तकनीकी ग्रन्थ के रचयिता भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं की रक्षा के लिये अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया। विष्णु को चक्र, शिव को त्रिशूल, इंद्र को वज्र, हनुमान को गदा और कुबेर को पुष्पक विमान विश्वकर्मा ने ही प्रदान किये थे। सीता स्वयंवर में जिस धनुष को श्रीराम ने तोड़ा था, वह भी विश्वकर्मा के हाथों बना था। जिस रथ पर निर्भर रह कर श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन संसार को भस्म करने की शक्ति रखते थे उसके निर्माता विश्वकर्मा ही थे। पार्वती के विवाह के लिए जो मण्डप और वेदी बनाई गई थी,वह भी विश्वकर्मा ने ही तैयार की थी। विश्वकर्मा शिल्पशास्त्र के आविष्कारक और सर्वश्रेठ ज्ञाता माने जाते हैं जिन्होनें देवताओं के सम्पूर्ण विमानों की रचना की और जिनके द्वारा आविष्कार कर शिल्पविद्याओं के आश्रय से सहस्रों शिल्पी मनुष्य अपने जीवन निर्वाह करता है।
भगवान विश्वकर्मा की पूजा और यज्ञ विशेष विधि-विधान से करना चाहिए।
इस दिन प्रातः स्नान आदि करने के बाद पत्नी के साथ पूजा स्थान पर बैठे। इसके बाद विष्णु भगवान का ध्यान करनें के बाद हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर-
ॐ आधार शक्तपे नम: और
ॐ कूमयि नम:,
ॐ अनन्तम नम:,
ॐ पृथिव्यै नम:
कहकर चारों ओर अक्षत छिड़के और पीली सरसों लेकर चारों दिशाओं को बांधे ।
अपने हाथ में रक्षासूत्र बांधे तथा पत्नी को भी बांधे। पुष्प जल पात्र में छोड़े। इसके बाद हृदय में भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें। रक्षा दीप जलाये, जल के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करें।
शुद्ध भूमि पर अष्टदल (आठ पंखुड़ियों वाला) कमल बनाए। उस स्थान पर सात अनाज रखे। उस पर मिट्टी और तांबे का जल डाले। इसके बाद पंचपल्लव (पाँच पेड़ो के पत्ते), सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश का ढ़क दें। चावल से भरा पात्र समर्पित कर ऊपर विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति स्थापित करें और वरुण देव का आह्वान करें। पुष्प चढ़ाकर कहें -
हे विश्वकर्मा जी, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए।
इस प्रकार पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा कर हवन यज्ञ करें। धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है।
Shradh Puja
विक्रम सम्वत् 2071 भाद्रपद शुक्ल अमा./ प्रति. से आश्विन कृष्ण अमावस
Shradh is not just a day to donate lumps of grains or just feed a pandit with Indian cultural food. It has a deep spiritual as well as philosophical meaning. From spiritual point of view, by performing Shradh via reciting proper Mantras and give tribute to our ancestors. This way they bless us. On the other hand, a Shradh is the chance to distribute our wealth in society in some form to help needy. This day helps in enhancing the righteousness in our nature. And it takes us closer to God.
Brahminis and Brahmans are also feed, as it is believed that anything feed to Brahminis this day directly goes to the ancestor’s soul. There are many other things too for offering to our ancestors. As Shradh is the time to pay tribute to the dead ones, buying new clothes and getting a haircut or even cutting toe nails is strictly prohibited during this period. On the day of Shradh, women don’t wash their hair, men don’t even shave.
These days are considered for the remembrance and Tarpan of our ancestors and saints. Shradh is – “Shradhya Yatha Kriyata Tat”, which means ‘something that is offered with devotion is known as Shradh.’ Ancestors, who put their endeavor for our welfare, who worked throughout their whole lives for us, we should remember them with faith. And, in whatever Yoni they are, we should pray for their happiness and peace. All these things are possible by doing Pind Daan as well as Tarpan. When soul goes away leaving its body, then it’s smallest of the smallest part wanders around everywhere and they get salvation as per their deeds. Unsatisfied souls keep on wandering around. However, souls who get their Shradh done properly at places like Gaya, Prayag, Ujjain and allied places, goes to heaven.
A small portion of the food is also offered to the crows, cows and dogs that is considered as a connection between the world of the living and our ancestors before offering it to Brahmin. Round balls of rice and flour, called pinda, are also offered, along with the sacred kusha grass and flowers, amidst sprinkling of water and chanting of mantras.
On each day of the dark fortnight (Pitra Paksha), special offerings are made to the ancestors whose lunar date (Tithi) of death corresponds to that particular day. One must offer food to Brahmin and donate Yatha Shakti.
अनन्तचतुर्दशी
अनन्तचतुर्दशी
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्त सूत्र बांधा जाता है। चौदह गांठ वाले अनंत सूत्र को विधिवत धारण करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
प्रात:स्नान आदि करने के बाद घर में पूजाघर की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें। शास्त्रों के अनुसार यदि सम्भव हो तो पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करें। कलश पर शेषनाग की शैय्या पर लेटे भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा चित्र को रखें। उनके समीप 14 गांठ लगाकर हल्दी से रंगे कच्चे डोरे को रखे और गंन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य द्वारा ॐ अनन्ताय नम: मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंत सूत्र की विधि-पूर्वक पूजन करें। तत्पश्चात् अनन्त भगवान का ध्यान कर शुद्ध अनन्त को
अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।
अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥
मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें। यह धागा अनन्त फल देने वाला है । अनन्त की चौदह गाँठे चौदह लोको को प्रतीक है उनमे अनन्त भगवान विद्यमान रहते है ।
अनंत सूत्र बांध लेने के बाद किसी ब्राह्मण को नैवेद्य में भोग लगाया पकवान देकर स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें। पूजा के बाद व्रत-कथा को पढें या सुनें।
महाभारत काल में जब युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से इस व्रत के महात्म्य के बारे में पूछा, तो श्री कृष्ण ने बताया -हे युधिष्ठिर ! प्राचीन काल में कौड़िल्य ऋषि की पत्नी सुशीला ने अन्नत चतुर्दशी का व्रत किया सुशीला ने उस व्रत का अनुष्ठान करके चौदह गांठो वाला ड़ोरा अपने हाथ में बांध लिया। जिसे देख कौड़िल्य ऋषि को लगा सुशीला ने यह सूत्र उन्हें वश में करने के लिये बांधा है। गुस्से मे ऋषि कौड़िल्य ने उस ड़ोरे को तोड़ आग में ड़ाल दिया। इस जघन्य कर्म के परिणाम स्वरुप उनकी सम्पत्ति नष्ट हो गई। दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने को विवश हो जाने पर कौड़िल्यऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए। जब वे भटकते-भटकते निराश होकर गिर पड़े और बेहोश गए तो भगवान अनन्त दर्शन देकर बोले-हे कौण्डिल्य! तुम्हारे पश्चाताप से मैं प्रसन्न हूँ। आश्रम जाकर चौदह वर्ष तक विधि विधान से अनन्त व्रत करो तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जायेगे । कौण्डिल्य ने वैसा ही किया। उन्हे सारे कष्टो से मुक्ति मिल गई ।
वामन पूजन
6th September 2014
विक्रम सम्वत् 2071
भाद्रपद शुक्ल द्वादशी
प्रभावे सर्व देवानां वामनाय नमो नम:॥
भक्तो की रक्षा, दुष्टों का संहार और धर्म की रक्षा के लिये भगवान बार-बार अवतार लेते हैं। क्षीरशायी भगवान का विराट रूप होता है। उस विराट रूप के सहस्त्रों सिर, सहस्त्रों कर्ण, सहस्त्रों नासिकाएँ, सहस्त्रों मुख, सहस्त्रों भुजाएँ तथा सहस्त्रों जंघायें होती हैं। वे सहस्त्रों मुकुट, कुण्डल, वस्त्र और आयुधों से युक्त होते हैं। उस विराट रूप में समस्त लोक ब्रह्माण्ड आदि व्याप्त रहते हैं , उसी के अंशों से समस्त प्राणियों की उत्पत्ति होती है ।
देवताओं को दैत्यराज बलि के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिये भगवान विष्णु ने वामन रुप में अवतार लिया था। भगवान के इस वामन रुप की पूजा करने के लिये भगवान वामनदेव की मूर्ति स्थापित कर तांबे के पात्र में अर्ध्य दान करें। अगर सामर्थ्य हो तो स्वर्ण मूर्ति की स्थापना करें। अर्ध्य मंत्र है-
नमस्ये पद्मनाभाय नमस्ते जल; शायिने तुभ्यमर्च्य प्रयक्षामि वाल यामन आपिणे,नम:
शांग धनुर्याणि पाठये वामनाय च,यज्ञभुव फ़लदा त्रेच वामनाय नमो नम:॥
भगवान वामदेव की स्वर्ण मूर्ति के समक्ष 52 पेडे तथा दक्षिणा रखकर पूजन करना चाहिए। भगवान वामन को दही, चावल, चीनी, शरबत, का भोग लगाना चाहिए। उसके बाद यह सभी चीजे दक्षिणा के रुप में ब्राह्मण को दान करके व्रत का धारण करना चाहिए। इस दिन दान में ब्राह्मणों को एक माला, एक कमण्डल, लाठी, आसन, गीता, फ़ल, छाता, तथा खडाऊं भी दक्षिणा में देना चाहिए । इस व्रत को करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
दैत्यराज बलि ने एक बार देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। जिससे देवताओं पर अत्याचार बढ़ने लगा। देवताओं को राक्षसों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिये भगवान विष्णु ने देव माता अदिति और महर्षि कश्यप के घर वामन का जन्म लिया। दैत्यराज बलि बहुत ही दानवीर था। भगवान यह भली-भांति जानते थे। इसलिये उन्होनें वामन ब्रह्मचारी का रुप धारण कर, राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी। दानी बलि वामन देव को तीन पग जमीन देने के लिये मान गए। वामन रुप भगवान ने एक पग से स्वर्ग दूसरे से पृथ्वी नाप ली। तीसरे पग के लिए जब कोई स्थान रहा तो वचन के पक्के बलि ने अपना सिर भगवान के आगे रख दिया। भगवान वामन बलि की उदारता से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होनें बलि के सिर पर पैर रख उसे पाताल लोक पहुँचा, वहाँ का राजा बना दिया।
Thursday, September 4, 2014
Indian Wedding - Seven Steps - Seven Vows
Indian Wedding - Seven Steps - Seven Vows
A Hindu marriage in particular is all about rituals and customs. Every ritual has its own meaning cannot be done away with. The ritual of saat phera or seven vows is one of the most significant rituals of the Hindu wedding in India.
Any Indian marriage is incomplete without these vows and is deemed complete once they are conducted. The seven vows or the seven steps are of great mythological importance where the couple takes round the holy fire and every single round has its own significance. With every round, the bride and groom make one promise to each other. These seven vows are the seven promises which the bride and the groom do to each other for a happy and prosperous life. They are bound together by an unseen bond protected by these promising words.
Let us all know about these seven vows. These seven vows make bride and groom learn to live together with love, duty, honor and devotion forever. These seven pheras has special significance for the bride and groom for the peace and welfare of the world.
Indian marriage is the icon of purity and the interaction of two isolated community and culture. Except some minor differences, Hindu marriage ceremony consists of the same customs.
Indian Hindu wedding vows:
1. Wellness: The couple requests to the almighty to shower blessings in the form of pure and nourishing food with a respectful and noble life. Man pledges to provide food and welfare for the family. He takes responsibility of raising livelihood. Woman takes charge of maintaining household.
2. Strength: With the second step, Bride and Groom pledge that they will co-operate each other in every situation and grow mental, physical and spiritual strengths so that they can share their happiness and enjoy life together. Couple promises to stand by other's side with courage and strength.
3. Prosperity and Intimacy: Couple pledges to stay together and pray to the almighty to bring prosperity in their lives. The couple pleads for wisdom, wellness and wealth in order to live a content and satisfied life. They pledge to remain spiritually committed and the bride assures the groom that by the virtue of true love and devotion she will remain a noble wife.
4. The love: With the fourth step, couple promise to take care of their elders in the family and not to disregard and forget them. The groom thanks his would-be wife for bringing auspiciousness, happiness and sacredness in his life. In return, the bride takes an oath to serve and please her husband in every way possible. Together, they also pledge to take care and respect their elders in the family. Together they pledge to strengthen and maintain the family relationship.
5. Descendants: With the fifth step, bride and groom request to the almighty that they get the best gift of the nature in the form of children. couple makes a promise to be responsible parents and provide the children with fine education and fundamental values of life.
6. Health and Longevity: With their sixth step together, the bride and the groom pray to divinity for disease free and healthy life for their families and themselves so that they can lead a harmonious and balanced life together. The groom wishes that he would fill joy and peace to his wife's life; while the bride provides assurance that she would participate with her husband in all his noble and divine acts.
7. Quality: With the seventh step, couple prays to God that their new associativity would fill with respect, confidence, maturity, honesty and understanding.
Wife and husband are the two wheels of the life chariot. No one is superior to each other. Seven vows make the couple learn about a process of promising each other for leading a conjugal life.
Tuesday, September 2, 2014
Benefits Of Eating With Hands
Benefits Of Eating With Hands
Many people find eating with hands unhygienic and disgusting but the connection of eating food with hands is not only with the body but also with the mind and soul. Lets know the benefits of it.Within many Indian households nowadays, the practice of eating food with the hands has been replaced with the use of cutlery but very few know the benefits of having food with hands.
Benefits - Eating With Hands
The ancient tradition of eating with hands is derived from mudra (postures) practices and are widespread in many aspects within Hinduism. As we know that hands postures are used during mediation and Yoga. Even in many classical forms of dance, hand postures are important.
* As per Vedic knowledge, our hands and feet consist of the five elements - Space, Air, Fire, Water and Earth. Practice of eating with hands is also mentioned in Ayurveda. As per Ayurvedic texts, each finger is an extension of one of the five elements:
Thumb: Fire
Index finger: Air
Middle finger: Heaven/ Ether
Ring finger: Earth
Little finger: Water
Five Elements in Hand
Each finger transforms food in digestive form before it passes to human digestion system. Improved digestion enhances the pleasure of eating as taste, texture and smell is felt better while having food with hands.
- The skin sends the senses to the brain about the temperature, texture of the food and this acts like a catalyst in the action of generating the necessary salivary juices.
- Eating with the hands, one can verify the temperature of the food before and it can prevent one from burning of the mouth.
- Some people believe that hands behave as energetic cleanser when the food passes via hand to mouth. Similar kind of tradition is followed in other religion also when people eat food after placing their palms above the food.
The logic behind it that food contains various external energies positives, negatives, pains, emotions, thoughts etc when it passes from various people like vegetable/ spice seller, cook, waiter etc. It is believed hands help cleaning all external energies so that it could not impact the human soul.
A similar pattern is found in many people coming from abroad that they feel suffocation and negative feelings when they eat through knife and fork. On the other hand, if they eat with their hands, they experience heavenly and divine feeling.
Science Behind Eating With Hands
We have some bacteria, known as normal flora, found on our skin. These bacteria are not harmful to human instead they protect us from many harmful bacteria from outside environment.
It is required to establish normal flora in various parts of our body like in mouth, throat, intestine, gut etc for the betterment of health.
Eating with spoon for long time can change the arrangement of normal flora. With this, the pattern of normal flora can be changed in the gut. It results reduced synchronous immunity to environmental bacterial germs.
Lets take an example, in India, when some people come from abroad after spending several years of staying there mostly suffer from acute gastroenteritis whereas the local people don't, because their normal flora and gut flora are in sync.
Karaagre Vasate Lakssmih Karamadhye Sarasvati |
Karamuule Tu Govindah Prabhaate Karadarshanam ||
i.e. At the Top of the Palm Dwell Devi Lakshmi and at the Middle of the Hand Dwell Devi Saraswati, At the Base of the Hand Dwell Sri Govinda; Therefore one should Look at one's Hands in the Early Morning and contemplate on Them. Hence, This shloka suggests that the divinity lies inside our hands.
Many things within Hindu culture seem weird and unusual but once we go deep into it, we find that a surprising and vast amount of knowledge is hidden in Vedic culture.
Portland Pandit
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